बुगाणी गांव खिर्सू II 𝗛𝗲𝗺𝘄𝗮𝘁𝗶𝗻𝗮𝗻𝗱𝗮𝗻 𝗕𝗮𝗵𝘂𝗴𝘂𝗻𝗮 जी की जन्मभूमि II एक ऐतिहासिक गांव II 𝗵𝗶𝗺𝗮𝗹𝗮𝘆𝗮𝗻𝗷𝗼𝗴𝗶 𝗜𝗜
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 Published On Sep 23, 2024

बुगाणी गांव चलनस्यूँ पट्टी के खिर्सू ब्लॉक मे पड़ता है. बुगाणी खिर्सू से 20 किलोमीटर की दूरी पर है, यह गांव श्री नगर गढ़वाल से भी ज्यादा दूर नहीं है.

स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म भी 25 अप्रैल 1919 को इसी गांव मे हुआ था. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल और भारत के एक जाने माने राजनीतिज्ञ थे, बहुगुणा जी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैँ और केंद्र मे भी कैबिनेट मिनिस्टर रह चुके हैँ

उनके इसी गांव मे उनके पैतृक घर मे उनकी याद मे एक musium बनाया गया है,

वह नेताओं की उस पांत के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने स्थानीय से लेकर राज्य और राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। नई पीढ़ी भले ही हिमपुत्र से उतनी परिचित न हो, लेकिन उन्हें जानने वालों के जेहन में जब चूड़ीदार पायजामा, कुर्ता, कुर्ते पर जवाहर बंडी, सिर पर गांधी टोपी, टोपी से बाहर झांकते घुंघराले बाल, चेहरे पर तेज और संकल्प के ओज से ओतप्रोत एक व्यक्ति की छवि उभरती है तो बहुगुणा उनकी स्मृतियों में कौंधने लगते हैं।
इसका आरंभ ही यह अत्यंत रोचक है कि गौड़ देश (बंगाल) से तीर्थ के लिए पहाड़ पर आया एक बंद्योपाध्याय परिवार कैसे 'बहुगुणा' बन गया। असल में उनके पूर्वज की प्रतिभा से प्रसन्न होकर गढ़वाल नरेश ने कई विषयों के ज्ञान होने का सम्मान उन्हें 'बहुगुणा' उपाधि के रूप में प्रदान किया, जो कालांतर में उपनाम बन गया। पुस्तक एचएन बहुगुणा के निजी एवं सार्वजनिक जीवन के साथ समान रूप से न्याय करते हुए आगे बढ़ती है। उनके विवाह का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है। बहुगुणा का पहले एक विवाह हो चुका था, लेकिन जब कमला त्रिपाठी से दूसरे विवाह की बात आई तो परिवार में पुरजोर विरोध हुआ। गैर-पहाड़ी लड़की को लेकर बड़ी नाराजगी थी। किसी तरह बात बनी। उस बारात में डा. संपूर्णानंद भी शामिल हुए, जिनकी सरकार में बहुगुणा मंत्री भी बने। कमला बहुगुणा ने भी कालांतर में संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

यह उस दौर की बात है, जब इंदिरा गांधी 'गूंगी गुडिय़ा' वाली छवि तोड़कर एक मजबूत नेता के रूप में स्वयं को स्थापित करने में लगी थीं। राष्ट्रपति का चुनाव इसका अहम पड़ाव बना। सिंडिकेट और श्रीमती गांधी आमने-सामने थे। राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार (मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता) और संगठन (प्रदेशाध्यक्ष कमलापति त्रिपाठी) दोनों के स्तंभ सिंडिकेट के साथ। तब सिर्फ प्रदेश महामंत्री बहुगुणा इंदिरा गांधी के खुले समर्थन में थे। किसी तरह उन्होंने कमलापति त्रिपाठी को मनाया और यही मान-मनौवल राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे में निर्णायक सिद्ध हुआ और इंदिरा बहगुणा की मुरीद बनीं।
इसी प्रकार 1971 में इंदिरा गांधी की जीत में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। तब माना गया कि उन्हें भारी-भरकम मंत्रालय मिलेगा। हालांकि मिला संचार महकमा, जो उन दिनों इतनी चमक-दमक वाला नहीं था। फिर भी उन्होंने सक्रियता से अपना काम करना शुरू किया और शायद इसी का पारितोषिक उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के रूप में मिला। बाद में इंदिरा गांधी से उनका मनमुटाव और जेपी से जुड़ाव भी हुआ। उनके जीवन में ऐसे कई मौके आए, जब उन्हें खारिज कर दिया गया, लेकिन बहुगुणा फिर से उभरने में सफल रहे। उन्होंने वही किया, जिसकी उनके अंतरात्मा ने गवाही दी।

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